KARNI MATA CHIRJA
सगती आरत सांभळे , तारत आवड़ त्यांय ।।
देवी भारत देश री , सारत काज सदाय ।।1।।
इम परवाड़ा आपरा , म्हें सुणिया घण मात ।।
अवस रखावण आवसी , बणी तिहारी बात ।।2।।
उर बीच शंको आवड़ा, इम सालत हैं आज ।।
दीसै नह हथ दोकड़ो , किम सरसी मां काज ।।3।।
मीठा परचा मात हैं , आवड़ दिया अनेक ।।
रदे भरोसो राखके , नांह नीति तज नेक ।।4।।
अद्रश्य रूपे आवसी , सगती करण सहाय ।।सिध कारज होसी सबे , महर कियां महमाय ।।5।।
विपदा हर विसवेसरी , कर किरपा किनयांण ।।
धर दैसांणे तूं धणी , सर धर हाथ सुजांण ।।6।।
साद दास रो सांभळे , मात धरो नह मौन ।।
आप न तारण आवसी , (तो) करे भीर फिर कौन ।।7।।
देवी पकड़ो दास की , बूडत वखते बांह ।।
जद जाचक तव जांणसी , नांव डूबेगी नांह ।।8।।
छेलो अब तो सांभळो , हेलो करूं हुजुर ।।
माया मेलो मावड़ी , भर थैलो भरपूर ।।9।।
दश दोहां में दाखवी , मन री पीड़ा मीर ।।
काज सुधारण कारणें , भयहू करणी भीर ।।10।।
मीठा मीर डभाल
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